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Saturday, 23 July 2011

BAL GANAGADHAR TILAK

बालगंगाधर तिलक
23 जुलाई सन 1856 को जन्मे बालगंगाधर तिलक स्वतंत्रता सेनानियों के सिरमौर हैं, क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों की नीयत को संपूर्ण रूप में देखा और उसका जवाब उन्हीं की भाषा में करारे शब्दों में दिया। ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’-इस नारे का उद्घोष तिलक ने ही किया था, जिससे स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम और नई दिशा प्राप्त हुई।
तिलक ने ‘गुलामी’ को उसके समग्र रूप में देखा था। अंग्रेजी शासक जहां एक ओर फूट डालो और राज करो की नीति अपना रहे थे, वहीं दूसरी ओर तत्कालीन शिक्षा द्वारा वे नौकरों की एक नई जमात तैयार करना चाहते थे। इतना ही नहीं, ईसाई मिशनरियों ने भारत के गरीब और पिछड़े हिंदुओं को ईसाई बनाने की भी मुहिम छेड़ रखी थी। इस प्रकार तीन तरफ से किए जा रहे हमलों का जवाब तिलक ने सच्ची शिक्षा के रूप में दिया। उन्होंने शिक्षा की ऐसी भूमिका तैयार की जो भारतीयों को आत्मनिर्भर बनाए, उनकी आर्थिक तंगी दूर करे, उन्हें उनके विद्रोहियों की प्रत्येक चाल की जानकारी दे और सबसे बढ़कर उनमें भारतीय होने का गौरव जाग्रत करे।
महाराष्ट्र में ‘गणेशोत्सव’ और ‘शिवाजी उत्सव’ जैसे कार्यक्रमों की प्रेरणा देकर बालगंगाधर तिलक ने भारतीयों को सामाजिक व सांस्कृतिक स्तर पर सूत्र में बांधे रखने का शुभारंभ किया। इन उत्सवों ने उस समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जो भूमिका निभाई, वह अपने आप में एक मिसाल है।
‘प्रत्येक महान पुरुष के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है’-यह कहावत तिलक के संदर्भ में भी खरी उतरती है। उनकी धर्मपत्नी तापी, जिन्हें बाद में सत्यभामा नाम से पुकारा जाने लगा, ने जिन्दगी के प्रत्येक मोड़ पर तिलक का साथ दिया। तभी तो जेल में अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिलने पर कर्मठ तिलक के हृदय में छिपी प्रेम की पावन सरिता आंखों के रास्ते अजस्र रूप से बह निकली थी। इस आघात से उठी गहरी टीस ने ही उन्हें आत्मतत्व का प्रतिपादन करने वाले पवित्र ग्रंथ ‘श्रीमद्भागवद्गीता’ के रहस्यों का खुलासा करने को प्रेरित किया। इस घटना के बाद उन्होंने स्वयं को देश के स्वतंत्रता संग्राम में संपूर्ण रूप से झोंक दिया।

उस महान देशभक्त के 154वे जन्म दिवस उनको कोटि-कोटि प्रणाम...

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