"गाँधी जी ने देश को छलकर देश के टुकड़े किए . क्योकि
ऐसा न्यायालय या कानून नहीं था , जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा
सकता , इसलिए मैंने गाँधी जी को गोली मारी . उनको दंड देने का केवल यही
तरीका रह गया था .
-अमरवीर नाथू राम गोडसे
"यदि देश भक्ति पाप है तो मै मानता हूँ मैंने पाप किया
है. यदि प्रशंसनीय है तो मै अपने आप को उस प्रशंसा का अघिकारी समझता हूँ.
मुझे विसवास है कि मनुष्यों द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर कोई न्यायालय
हो तो उसमे मेरे काम को अपराघ नहीं समझा जायेगा. मैंने देश और जाति कि भलाई
के लिए यह काम किया. मैंने उस व्यक्ति (गाँधी) पर गोली चलाई जिसकी नीति से
हिन्दुओं पर घोर संकट आये, हिन्दू नष्ट हुए".
-अमरवीर नाथू राम गोडसे
"मेरा यह पूर्ण विशवास रहा है कि अहिंसा का अति प्रचार
हिन्दू जाति को अत्यंत निर्बल बना देगा और अंत में यह जाति इस योग्य भी
नहीं रहेगी कि वह दूसरी जातियों के , विशेष रूप से मुसलमानों के ,
अत्याचारों का प्रतिरोध कर सके . इस लिए मैंने निशचय किया कि सार्वजानिक
कार्य में लगूँ ओय अपने जैसे विचारों के व्यक्तियों का संगठन करूँ . इस
दिशा में मैंने और आप्टे ने मिलकर काम किया एक दैनिक पत्र अग्रणी प्रकाशित
किया . हम लोग गांघी जी कि अहिंसा के विरोधी नहीं थे , प्रत्युत इस बात के
अधिक विरोधी थे कि गाँघी जी अपने विचारो और कार्यों में मुसलमानों का
अनुचित पश्र लेते थे और उनके सिधान्तों एवं कार्यों से हिन्दू जाति को
अधिकाधिक हानी हो रही थी .-अमरवीर नाथू राम गोडसे
"वास्तव में मेरे जीवन का उसी समय अंत हो गया था जब
मैंने गाँधी पर गोली चलाई थी. उसके पशचात मै मनो समाधि में हूँ और अनासक्त
जीवन बिता रहा हूँ. मै मानता हूँ कि गांघी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट
उठाए, जिसके कारण मै उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ ,
किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का
अधिकार नहीं था. मै किसी प्रकार क़ी दया नहीं चाहता हूँ. मै यह भी नहीं
चाहता हूँ कि मेरी और से कोई दया कि याचना करे. अपने देश के प्रति भक्ति-
भाव रखना यदि पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है. यदि
वह पुण्य है तो उसके प्रति पुण्य-पद पर मेरा नम्र अधिकार है . मेरा विशवास
अडिग है कि मेरा कार्य नीति की द्रष्टि से पूर्णतया उचित है . मुझे इस बात
में लेशमात्र भी संदेह नहीं कि भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार
इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे .
-अमरवीर नाथू राम गोडसे
ऐसा न्यायालय या कानून नहीं था , जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा
सकता , इसलिए मैंने गाँधी जी को गोली मारी . उनको दंड देने का केवल यही
तरीका रह गया था .
-अमरवीर नाथू राम गोडसे
"यदि देश भक्ति पाप है तो मै मानता हूँ मैंने पाप किया
है. यदि प्रशंसनीय है तो मै अपने आप को उस प्रशंसा का अघिकारी समझता हूँ.
मुझे विसवास है कि मनुष्यों द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर कोई न्यायालय
हो तो उसमे मेरे काम को अपराघ नहीं समझा जायेगा. मैंने देश और जाति कि भलाई
के लिए यह काम किया. मैंने उस व्यक्ति (गाँधी) पर गोली चलाई जिसकी नीति से
हिन्दुओं पर घोर संकट आये, हिन्दू नष्ट हुए".
-अमरवीर नाथू राम गोडसे
"मेरा यह पूर्ण विशवास रहा है कि अहिंसा का अति प्रचार
हिन्दू जाति को अत्यंत निर्बल बना देगा और अंत में यह जाति इस योग्य भी
नहीं रहेगी कि वह दूसरी जातियों के , विशेष रूप से मुसलमानों के ,
अत्याचारों का प्रतिरोध कर सके . इस लिए मैंने निशचय किया कि सार्वजानिक
कार्य में लगूँ ओय अपने जैसे विचारों के व्यक्तियों का संगठन करूँ . इस
दिशा में मैंने और आप्टे ने मिलकर काम किया एक दैनिक पत्र अग्रणी प्रकाशित
किया . हम लोग गांघी जी कि अहिंसा के विरोधी नहीं थे , प्रत्युत इस बात के
अधिक विरोधी थे कि गाँघी जी अपने विचारो और कार्यों में मुसलमानों का
अनुचित पश्र लेते थे और उनके सिधान्तों एवं कार्यों से हिन्दू जाति को
अधिकाधिक हानी हो रही थी .-अमरवीर नाथू राम गोडसे
"वास्तव में मेरे जीवन का उसी समय अंत हो गया था जब
मैंने गाँधी पर गोली चलाई थी. उसके पशचात मै मनो समाधि में हूँ और अनासक्त
जीवन बिता रहा हूँ. मै मानता हूँ कि गांघी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट
उठाए, जिसके कारण मै उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ ,
किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का
अधिकार नहीं था. मै किसी प्रकार क़ी दया नहीं चाहता हूँ. मै यह भी नहीं
चाहता हूँ कि मेरी और से कोई दया कि याचना करे. अपने देश के प्रति भक्ति-
भाव रखना यदि पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है. यदि
वह पुण्य है तो उसके प्रति पुण्य-पद पर मेरा नम्र अधिकार है . मेरा विशवास
अडिग है कि मेरा कार्य नीति की द्रष्टि से पूर्णतया उचित है . मुझे इस बात
में लेशमात्र भी संदेह नहीं कि भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार
इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे .
-अमरवीर नाथू राम गोडसे
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