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Friday, 29 July 2011

भारत बनाम भ्रष्टाचार: जन की गुहार जन-लोकपाल-


एक चतुर नार,

करे शत-प्रहार,

मुँह फाड़-फाड़,

डँसे बार-बार ।

जन चीत्कार करे बार-बार,

मचे हाहाकार,

आह! अत्याचार ।

ये दण्डप्रहार के बहाने हजार,

ये लोकाचार का बलात्कार,

यहाँ भ्रष्टाचार! वहाँ भ्रष्टाचार!

अँधी सरकार! चहुँ अँधकार!

भारत बीमार, रोग दुर्निवार ।


जन अब हमार सुन ले पुकार,

पारदर्शिता की यह बयार

बहती हीं जाये, रुक्के न यार।

मंथन करें , कर लें विचार,

जनता की माँग जन-लोकपाल,

जन की तलवार जन-लोकपाल,

यह नव-संग्राम, भ्रष्ट संहार।

अन्ना, किरण और केजरीवाल,

समरांत तक मानें न हार।

कहो बार-बार, चीखो बार-बार
जन की गुहार जन-लोकपाल,

अंतिम सवाल अब आर-पार,

जन-लोकपाल या मृत्युद्वार,

मद्द में चिंघार, जन-लोकपाल।

जन-लोकपाल! जन-लोकपाल!

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