एक चतुर नार,
करे शत-प्रहार,
मुँह फाड़-फाड़,
डँसे बार-बार ।
जन चीत्कार करे बार-बार,
मचे हाहाकार,
आह! अत्याचार ।
ये दण्डप्रहार के बहाने हजार,
ये लोकाचार का बलात्कार,
यहाँ भ्रष्टाचार! वहाँ भ्रष्टाचार!
अँधी सरकार! चहुँ अँधकार!
भारत बीमार, रोग दुर्निवार ।
जन अब हमार सुन ले पुकार,
पारदर्शिता की यह बयार
बहती हीं जाये, रुक्के न यार।
मंथन करें , कर लें विचार,
जनता की माँग जन-लोकपाल,
जन की तलवार जन-लोकपाल,
यह नव-संग्राम, भ्रष्ट संहार।
अन्ना, किरण और केजरीवाल,
समरांत तक मानें न हार।
कहो बार-बार, चीखो बार-बार
जन की गुहार जन-लोकपाल,
अंतिम सवाल अब आर-पार,
जन-लोकपाल या मृत्युद्वार,
मद्द में चिंघार, जन-लोकपाल।
जन-लोकपाल! जन-लोकपाल!
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