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Wednesday, 31 August 2011

लोकायुक्त की सीमाए

लोकायुक्त की सीमाएं लोकपाल के कुछ प्रमुख मुद्दों पर संसद में बहस के दौरान बसपा सांसदों ने यह कहकर वाहवाही लूटने की कोशिश की कि उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त की व्यवस्था भी है और भ्रष्टाचार के मामलों पर उनकी सिफारिशों पर अमल भी किया जा रहा है, लेकिन गत दिवस राज्य के लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने जो कुछ कहा उससे सच्चाई सामने आ जाती है। लोकायुक्त के मुताबिक मजबूत कानून न होने के कारण वह भ्रष्टाचार की तमाम शिकायतों में चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यह समझना कठिन है कि तकनीकी विद्यालय, विश्वविद्यालय, प्राविधिक शिक्षा विश्वविद्यालय, चिकित्सा विश्वविद्यालय, अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाएं लोकायुक्त के दायरे में क्यों नहीं हैं? सवाल यह भी है कि लोकायुक्त भ्रष्टाचार के मामलों में स्वत: संज्ञान क्यों नहीं ले सकते? यदि राज्य सरकार अपने इस दावे को सही सिद्ध करना चाहती है कि वह भ्रष्टाचार को सहन करने के लिए तैयार नहीं तो फिर उसे लोकायुक्त को वैसे अधिकार प्रदान करने में देर नहीं करनी चाहिए जैसे कुछ राज्यों और विशेष रूप से मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक में इस संस्था को दिए गए हैं। राज्य सरकार इससे भलीभांति अवगत है कि लोकायुक्त प्रशासन के पास न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही अधिकार। इतना ही नहीं, तकनीकी जांच के लिए उसके पास तकनीकी अधिकारी भी नहीं हैं। यह निराशाजनक है कि समय-समय पर लोकायुक्तों की ओर से इस संदर्भ में राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट कराए जाने के बावजूद स्थिति जस की तस ही है। राज्य सरकार का यह भी दावा है कि बिहार और मध्य प्रदेश की तरह से उसने सेवा के अधिकार से संबंधित कानून को भी लागू कर दिया है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही बयान करती है। यथार्थ यह है कि इस संदर्भ में जो व्यवस्था की गई है वह दिखावटी ही अधिक है। राज्य सरकार यह तर्क दे सकती है कि अब जब लोकपाल के अनुरूप लोकायुक्त के गठन के बारे में संसद की स्थाई समिति विचार कर रही है तब फिर उसे संबंधित कानून के निर्माण की प्रतीक्षा करनी चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह अन्य अनेक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी उपाय न करे

Tuesday, 30 August 2011

Hindu concept of beginning and end of universe


Hindu religion is the only one of the world’s great faiths dedicated to the idea that the cosmos itself undergoes an immense, indeed an infinite number of deaths and rebirths.
It is the only religion in which the time scales correspond, no doubt, by accident, to those of modern scientific cosmology. Its cycles run from our ordinary day and night to a day and night of Brahma 8.64 billion years long. Longer than the age of the earth or the sun and about half of the time since the big bang. And there are much longer time scales still.
There is the deep and the appealing notion that the universe is but the dream of the god who after a 100 Brahma years… dissolves himself into a dreamless sleep… and the universe dissolves with him… until after another Brahma century… he starts… recomposes himself and begins again the dream… the great cosmic lotus dream.
Meanwhile… elsewhere… there are an infinite number of other universes… each with its own god… dreaming the cosmic dream…
These great ideas are tempered by another perhaps still greater it is said that men may not be the dreams of the gods but rather that the gods are the dreams of men.
In India, there are many gods and each god has many manifestations. These Chola bronzes cast in the eleventh century include several different incarnations of the god Shiva. Seen here at his wedding.
The most elegant and sublime of these bronzes is a representation of the creation of the Universe at the beginning of each cosmic cycle – a motif known as the cosmic dance of Shiva. The god has four hands. In the upper right hand is the drum whose sound is the sound of creation. And in the upper left hand is a tongue of flame… a reminder that the universe now newly created… will billion of years from now will be utterly destroyed. Creation. Destruction.
These profound and lovely ideas are central to ancient Hindu beliefs as exemplified in this Chola temple at …. They are kind of reminiscent of modern astronomical ideas. Without doubt the universe has been expanding since the big bang but it is by no means clear that it will continue to expand for ever. If there is less than a certain amount of matter in the universe, then the mutual gravitation of the receiving galaxies will be insufficient to stop the expansion and the Universe will run away forever. But if there is more matter than we can see…hidden away in black holes… say or in hot but invisible gas between galaxies, then the universe holds together, and partakes in every Indian succession of cycles… expansion followed by contraction… cosmos upon cosmos…Universes without end. If we live in such an oscillating universe, then the Big Bang is not the creation of the cosmos but merely the end of the previous cycle the destruction of the last incarnation of the cosmos.
Neither of these modern cosmologies may be altogether to our liking. In one cosmology, the universe is created somehow from nothing 15 to 20 billion years ago and expands forever. The galaxy is mutually receding until the last one disappears over our cosmic horizon. Then the galactic astronomers are out of business… the stars cool and die…matter itself decays…and the Universe becomes a thin cold haze of elementary particles.
In the other, the oscillating universe, the cosmos has no beginning and no end… and we are in the midst of an infinite cycle of cosmic deaths and rebirths. With no information trickling through the cusps of the oscillation…nothing of the galaxies, stars, planets, life forms, civilizations evolved in the previous incarnation of the universe trickles through the cusp filters past the Big Bang to be known in our universe.
The death of the universe in either cosmology may seem little depressing. But we may take some solace in the time scales involved. These events will take tens of billions of years or more. Human beings or our descendants whoever they might be can do a great deal of good in the tens of billions of years before the cosmos dies.

Tuesday, 16 August 2011

कांग्रेस का हाथ गद्दारों के साथ !

गद्दारों की इस पार्टी में सुधार की अब कोई उम्मीद नजर नहीं आती। हमारा मानना था कि निचले सतर पर कॉंग्रेस में वेहद देशभक्त कार्यकरता हैं जिसका प्रभाब पहली पंक्ति के हिन्दूविरोधी-देशविरोधी नेताओं पर एक न एक दिन जरूर पढ़ेगा । 
लेकिन लगता है कि विदेशी इसाई मिसनरी विषकन्या के कांग्रेस पर कब्जे के बाद ऐसा होना लगभग नामुकिन सा हो गया है। जिस गद्दारी की शुरूआत इस भारत विरोधी की गुलाम सरकार ने 2004 में अर्धसैनिकबलों के जबानों को शहीद होने पर मिलने वाले पैसे में कटौती के साथ की वो अब गद्दारी का सतर इस हद तक पहुंच गया है कि भारतीय सैनिकों पर हमले करने बाले पत्तथरबाज आतंकवादियों को UPA सरकार ने पांच-पांच लाख देकर अपनी गद्दारी का प्रमाण देश के सामने रखा।
2004 में अर्धसैनिक बलों के शहीद जवानों के परिबार बालों को मिलने वाली राशि में कटौती करते वक्त कुतर्क दिया गया कि सरकार के पास पैसे नहीं हैं लेकिन आतंकवादियों को देने के लिए सरकार के पास पैसों की कोई कमी नहीं ये इस फैसले से सिद्ध होता है।
लोग कह रहे हैं कि इस विदेशी की कुलाद ने भारत समर्थक RSS की तुलना भारतविरोधी आतंकवादी गिरोह SIMI से कर दी हम पूछते हैं कि इस विदेशी की गुलाम जिस सरकार ने आतंकवादियों को मारने वाले सैनिकों पर केश दर्ज किए ,यहां तक कि पूरी की परी बटालियन को कटघरे में खड़ा कर दिया उस बिदेशी की कुलाद देशभक्त संगठन के वारे में और कह भी क्या सकती है?
सच्चाई यह है कि सेना किसी भी सरकार की ताकत होती है और सेना द्वारा देशहित में उठाए गए हर कदम की कोई भी देशभक्त सरकार समर्थन करती ही है लेकिन यहां मामला दूसरा है।
क्योंकि यह विदेशी इटालियन है इसे भारत की सेना परायी लगती है अपनी नहीं क्योंकि इसकी अपनी सेना तो इटालिन व युरोपियन सेना है । शायद इसीलिए ये विदेशी हर वक्त अपनी गुलाम सरकार पर भारतीय सेना को कमजोर करने वाले कदम उठाने का दबाब बनाती है। इसी दबाब की बजह से आज तक गुजरात से लेकर कशमीर घाटी तक सुरक्षाबलों के दर्जनों जवान जेलों में डाले जा चुके हैं व सैंकड़ों पर मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं।
अब जिसे, भारतीय सेना जो कि सरकार के इसारे पर ही हर काम करती है सिवाय देश की रक्षा के --- से ही डर लगता हो ---जिसे ये सेना अपनी दुशमन लगती हो ----भल उसे प्रधानमंत्री बनने से रोकने वाले देसभक्त संगठन क्या कभी अपने लगेंगे--- नहीं न ।
ऐसे में सोचने वाला विषय यह है कि जिस विदेशी के निशाने पर भारतीय सेना है उसके निशाने पर भला देशभक्त संगठन क्यों नहीं होंगे ?
पोटा
 हटवाकर इस भारत विरोधी इसाई ने भारत विरोधी आतंकवादियों की मदद की।मजेदारबात तो यह है कि इस विदेशी का तो भारतीय सर्वोच न्यायालय तक पर भरोसा नहीं बरना ऐसे कैसे हो सकता था कि देश पर हमला करने का जघन्य अपराध कतरने वाला आतंकवादी अफजल आज तक जिन्दा रहता ? वो भी तब जब माननीय न्यायालय ने इस भारतविरोधी आतंकवादी की फांसी की तारीख 19 नवंबर 2006 तय की हो और आज 17 अगस्त 2011 आने वाला हो।

भारतीय सेना व सर्वोच न्यायलय क्या सिर्फ RSS के हैं या फिर सारे देश के ? क्या ये दोनों संघ के इसारे पर काम करते हैं या फिर भारत सरकार के इसारे पर ? 
इस विदेशी ने इन दोनों ही समानन्नीय संस्थाओं को बदनाम करने के लिए बार-बार सराकर पर दबाब बनाया हो व सरकार ने वार-बार इस दबाब के आगे झुककर इन दोनों ही संस्थाओं का अपमान किया हो तो फिर आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि इस विदेशी के दबाब में ये सरकार किसी भी देशभक्त संगठन को बदनाम करने में कोई कसर वाकी छोड़ेगी ?
स्वामीराम देब जी हर भारतीय चाहे वो अमीर हो या गरीब को दिन-रात एक कर स्वस्थ जिन्दगी जीने का तरीका बताने के साथ-साथ भारतीयों को भारतीय संस्कृति का हर वो पहलू याद करवा रहे हैं जिसे वो विदेशी आक्रमणकारियों के गुलामीकाल के दौरान ही यातनाओं के परिणामस्वारूप भुला चुके थे।
स्वामी रामदेब संसार की एक सबसे बड़े भारतीय संगठन के प्रमुख हैं लेकिन क्या इस विदेशी की गुलाम सरकार ने उन्हें Z+ सुरक्षा पलब्ध करवाई नहीं न क्यों ?
इसलिए क्योंकि जिस स्वामी रामदेब जी का नाम सुनने पर हर देसभक्त भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है वही रामदेब इस विदेशी को कभी अपना नहीं लगता ?
आज भारत के इसके जैसे कितने ही शत्रु ऐसे हैं जिन्हें इस विदेशी की गुलाम सरकार देशभक्त भारतीयों की खून-पसीने की कमाई से सुरक्षा उपलब्ध करवाकर इनकी हिन्दू क्रांतिकारियों से रक्षा कर रही है ?
लेकिन गद्दारों की सरदार कब तक खैर मनाएगी एक न एक दिन ये सब गद्दार देशभक्त भारतीयों के हाथों अपने कुकर्मों का अन्जाम हर हाल में भुक्तेंगे ही...

Monday, 15 August 2011

अधूरी आज़ादी की 65 वीं वर्ष-गांठ...


सभी देशप्रेमियों को अधूरी आज़ादी की 65 वीं वर्ष-गांठ की शुभ-कामनाएं...

आज हमारा देश जिन विकट परिस्थितियों में खड़ा है... उन्हें देखें तो सारे पर्व निरर्थक हैं.??

लाखों करोड़ों के घोटाले, लाखों करोडो का काला धन देश को एक बहुत बड़े आर्थिक विषमता के साम्राज्यवाद की तरफ ले जा रहा है... जिस महंगाई और मुद्रा-स्फीति के विपरीत प्रभाव अब दिख रहे हैं वो तो केवल नमूना भर हैं... अभी लम्बी कहानी आगे बाकी है.??
जब देश की अर्थव्यवस्था अमेरिका की चरण धूल माथे पे रख के झूठे दंभ भरेगी तो ऐसा ही होगा.? अगर विनिमय बाज़ार के आंकड़ों से देखें तो हम अभी 'रिवर्स गीयर' में ही चल रहे हैं.??
रूपये की क्रय-शक्ति कितनी घट चुकी है, ये तो सबकी समझ में आ गया होगा और घर की रसोई का बजट ही सब बता देता होगा..
लेकिन अगर हम इसे राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ अनुमानित करें तो देश का क्या हाल हुआ होगा..अच्छी तरह समझा जा सकता है.??
जबकि हमने समय और जेब देखकर अपने खर्चे सीमित कर लिए या ख़त्म कर लिए और अपना जीवन स्तर सिर्फ ढो रहे हैं.??

ऐसे में हमारे देश के शासकों( उनका व्यवहार राजाशाही ही है-निरंकुश) का भी तो कुछ कर्तव्य होगा? लेकिन वो तो सब खुली लूट में शामिल हैं. और जो इनका विरोध करता है. आधी रात को सोते हुए को जगाकर मारते हैं ये.? -तो हुए ना निरंकुश शासक जिन्होंने 'रोम के नीरो' की मर्यादाये भी तोड़ दी.? आश्चर्य क्या है देश की बाग़-डोर भी तो 'नीरो' के वंशज के हाथ में ही है.?
यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी की विदेश यात्रा का खर्चा(1850 करोड़) इस देश की गरीब जनता ने दिया है. उनकी सब एशो-आराम का खर्च इस देश के लाखों ईमानदार करदाता देते हैं?
इस देश में कोई एक संस्था है जो सोनिया गांधी (सिर्फ सांसद हैं) और उनके परिवार के आय-व्यय का ब्यौरा दे सके??
किस आधार पर वो हमारे देश के और यहाँ के नागरिको की खून पसीने की कमाई व्यर्थ में लुटा रही हैं?? वो भी तब जब देश की जनता गरीबी और भूख से जूझ रही है... पूंजीवाद देश में पाँव पसार रहा है... गरीब और ज्यादा गरीब हो रहा है..??
देश की बाग-डोर दी,
जिन्हें समझ के "नारी"
वो तो निकली "हत्यारी"
और बन गईं पूतनाताड़का 
और शूपनखा की "प्यारी".

देश के एक-मात्र कठपुतली प्रधान-मंत्री (जिनका नाम इतिहास में जेड ब्लैक अक्षरों में लिखा जायेगा) ईमानदारी की नपुंसक चुप्पी साधे सब दुश्चरित्रों के महा-भारत में गूंगे धृत-राष्ट्र बने बैठे हैं.?? कुटिल सिब्बल, शकुनी दिग्विजय, पापी चिदम्बरम, क्रिकेट माफिया पंवार, दो लाख करोड़ का ये राजा, शीला दीक्षित-कलमाड़ी की कोमन वैल्थ और ऐसे सैकड़ों नेताई उदाहरण हैं, जो  "आदर्श सोसायटी" के भ्रष्ट हैं, जिन्होंने लोकतंत्र को दफना कर, नैतिकता की सब सीमायें तोड़कर हमारे देश को गर्त में डाल दिया है.??
पिछले तीन साल में भ्रष्टाचार और काला धन द्रुतगामी गति से बढ़ा है और देश को तीस साल पीछे धकेल गया है...
स्विस बैंक्स में भारतीयों का जमा काला धन देश के लिए माफिया बन चुका है जिस से लड़ना आम आदमी से परे है.?? और इसी काले धन के मालिक कथित 'देश चलाने वाले' हैं.??
अब कोई चोर ये तो कहेगा नहीं कि ले जाओ.. ये मैंने चोरी किया था आपके घर से.??


रही बात संसद की...सभी विपक्षी दल इन परिस्थितियों के लिए समान रूप से उत्तरदायी हैं.??
जो सत्ता पक्ष का मौन समर्थन करते हैं... इन्हें आम लोगों के दुःख से कोई लेना-देना नहीं है.??
संसद को तबेला बना दिया है, जहाँ ये सब 'एक थैली के चट्टे-बट्टे' देश की लाचार जनता का दूध दुहते हैं और निकल लेते हैं??

राजनीति की भ्रष्टता और धृष्टता ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को शर्मसार किया है.?

कांग्रेस की 'धर्म' की नीति पर तो गोरे फिरंगी भी मुहं छुपा लें...??
और कहें कि हमने तो "फूट डालो राज करो" की नीति अपने गुलाम देश में लागू की थी..?
जबकि कांग्रेस.. छी.. छी.. छी.. इनका तो कोई धर्म-ईमान, नीति और देश ही नहीं.??
हिन्दू  "साम्प्रदायिक" बाकी सब धर्म निरपेक्ष (सिक-यू-लायर्स) के साथ.?
वाह.. 'वोट बैंक' का तुष्टिकरण करने वाली पार्टी.. और बदकिस्मती उन कथित "अल्पसंख्यकों" की, जो सिर्फ वोट बैंक समझकर 'प्रयोग' किये जाते हैं.? अहिंसक हिन्दू पे आतंकवाद का आरोप लगाके खानग्रेस वोट बैंक का तुष्टिकरण कर रही है जिसका आज तक का सबसे बड़ा और तुच्छ उदाहरण 'सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक २०११' है...ये विधेयक देश के टुकड़े कर देगा जो ये भ्रष्ट और काला धन माफिया चाहते हैं.??

मीडिया भी इन 'सिक-यू-लायर्स' की 'रखैल' है जो वक़्त- बेवक्त नग्न होती रहती है.??

इस देश की हर पीढ़ी के साथ विडंबना रही है कि हमने जिसको सत्ता में बिठाया
उसने ही हमारे साथ विश्वासघात किया.??
90 लाख करोड़ (आम आदमी तो गिन भी नहीं पायेगा) तो घोटालो में ही चले गए..जिन पर सम्मान के साथ जनता का हक था... इन रुपयों को वही कुत्ते ही तो खा गये जिनको हमने पाला था...?? गरीब की रोटी तो छीन ली अब उसका खून चूस रहे हैं.. कभी महंगाई से तो कभी डीजल-पेट्रोल वृद्धि से... कभी घोटालो से तो कभी भ्रष्टाचार से... फिर भी बच गया तो पाकिस्तानी बम्ब फोड़ जाते हैं? ये नपुंसक देखते रहते हैं और कहते हैं कि पाकिस्तान-अफगानिस्तान जैसे हालात तो नहीं हैं??
राहुल गांधी का कहना है- हर हमला नहीं रोका जा सकता??
पापी चिदम्बरम कहता है- 31 महीने तो बचाए रखा मुंबई को.??
सुबोध कान्त सहाय फैशन शो देखते पकडे जाने पर कहते हैऐसी घटनाओं सेज़िन्दगी नहीं रूकती.??
भौंडा दिग्विजय तो सीधा बगैर सोचे समझे हिन्दू संगठनों पर आरोप लगता है...
जब देश के मंत्री इतना अनर्गल और गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य देंगे तब जनता कामनोबल तो ख़त्म है??

इनके ये शुभ सन्देश अभी मुंबई ब्लास्ट 2011 के हैं.
ऐसी भ्रष्ट और लोकद्रोही राजनीति पर एक मशहूर शायर कहते हैं-
                                                  "बुलंदी का नशा सिम्तों का जादू तोड़ देती है,
                          हवा उड़ते हुए पंछी के बाजू तोड़ देती है.
                          सियासी भेडियोथोड़ी बहुत गैरत जरुरी है,
                          तवायफ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देतीहै."

जब दुश्मन घर में बैठा हो तो कोई कितनी ही सीमाओं की चौकसी कर लें,
विजयी होना संदिग्ध परिस्थितियों में ही है??

हमारे पड़ोस में एक 'अमन की आशा' है जो दो-चार महीनो में किसी ना किसी शहर में धमाके कर जाती है और हम 'अहिंसा के समर्थक' 'शांति के पुजारी' प्रेम बाँटते रहते हैं..पिछले 65 साल से यही तो हो रहा है.. और हम प्रेम ही तो किये जा रहे हैं--
कभी अपाकिस्तान से, कभी अफज़ल से तो कभी कसाब से...
कभी कश्मीरी अलगाववादियों से...हिन्दू देवियों की नग्न तस्वीर बनाने वालेहुसैन से...
यहाँ मेरठ में रहकर कराची में भारत के खिलाफ आग उगलने वाले बशीर बद्र से....
भारत से कमाए पैसे निर्यात करने वाले राहत फ़तेह अली खान से....
कितने पाकिस्तानी कलाकार हैं मुंबई में जो हमारे प्रेम पे ही पल रहे हैं.....
कोई हिन्दुस्तानी वहाँ पाक में इतना प्यार पा सकता है.?????
हमने तो सब कुछ गँवा के दो ही तो चीज़े पाई हैं......
ये नाकाम कांग्रेस सरकार.??
और
प्रेम...जो बोर्डर पे हमारे जवानों को मिलता रहता है.??

बात की जाए हमारी सेना  सैनिकों की तो इनके कर्तव्य और ईमानदारी कीमिसाल कहीं नहीं हैअब तो पूरे भारत में केवल माँ भारती के 'जवानही हैंजिनपर हम गर्व कर सकते हैं. हमारे जवानों के लिए कवि मनवीर 'मधुरकहते हैं- 
   "सैनिकों के शौर्य पे ना कोई प्रश्नचिन्ह यदि ठाने शत्रु को ये जड़ से उखाड़ देते हैं,
   कोई दो-दो हाथ करना भी यदि चाहता तो एक बार में ही भूमि पे पछाड़ देते हैं.
   कोई माया मातृभूमि में कुदृष्टि डालता तो ऐसे आइनों के चेहरे बिगाड़ देते हैं.
   वंशज भरत के हैं,  सामने हो सिंह के भी खेल खेल में  ही जबड़े को फाड़ देतेहैं."

मेरे राष्ट्रवादियों, मेरे देशप्रेमियो..
उठो, समय की पुकार है..
जागो, हालात की हुंकार है..
तुम  सो  रहे  हो  नौजवानों  देश  बिकता है,तुम्हारी संस्कृति का है खुला परिवेश बिकता है
सिंहासनों  के  लोभियों के  हाथ  में  पड़ कर,तुम्हारे देश के इतिहास का अवशेष बिकता है 
पिशाचों
 से बचा लो देश कोअभिमान ये होगा,तुम्हारा राष्ट्र को अर्पित किया सम्मान ये होगा।

पन्द्रह अगस्त का दिन कहता
आज़ादी अभी अधूरी है। 
सपने सच होने बाक़ी हैं
रावी की शपथ  पूरी है॥ 
जिन लाशों पर पग धर कर 
आजादी भारत में आई। 
वे अब तक हैं खानाबदोश 
ग़म की काली बदली छाई॥ 
कलकत्ते के फुटपाथों पर 
जो आंधी-पानी सहते हैं। 
उनसे पूछोपन्द्रह अगस्त के 
बारे में क्या कहते हैं॥ 
हिन्दू के नाते उनका दुख 
सुनते यदि तुम्हें लाज आती। 
तो सीमा के उस पार चलो 
सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥ 
इंसान जहाँ बेचा जाता
ईमान ख़रीदा जाता है। 
इस्लाम सिसकियाँ भरता है
डालर मन में मुस्काता है॥ 
भूखों को गोली नंगों को 
हथियार पहनाये जाते हैं। 
सूखे कण्ठों से जेहादी 
नारे लगवाए जाते हैं॥ 
लाहौरकराचीढाका पर 
मातम की है काली छाया। 
पख़्तूनों परगिलगिट पर है 
ग़मगीन ग़ुलामी का साया॥ 
बस इसीलिए तो कहता हूँ 
आज़ादी अभी अधूरी है। 
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं
थोड़े दिन की मजबूरी है॥ 
दिन दूर नहीं खंडित भारत को 
पुनः अखंड बनाएँगे। 
गिलगिट से गारो पर्वत तक 
आजादी पर्व मनाएँगे॥ 
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से 
कमर कसें बलिदान करें। 
जो पाया उसमें खो  जाएँ
जो खोया उसका ध्यान करें॥

वन्दे-मातरम्...
जय हिंद...जय भारत....